- 28 Posts
- 41 Comments
कल रात बारिश आई थी ,
खिदकियों पर बूंदों ने दस्तक दी ।
उसकी बातें लेकर आई थी ,जिसे
रात भर सुनाती रही ।
उसने हवाओं पर जो लिखा था ,
नमी लिए मेरे आँगन मे कल
बरस रही थी ।
मेरे छत के कोने से टपकता
हर एक बूंद ,
उसके चेहरे सी लगती ।
जो माटी से मिलते ही
मटमैली हो जाती ।
बारिश कह रही थी ,
“वो त्रस्त है
तेरी यादों की जमीं मे
इतनी उर्वरक शक्ति है जो
हमेशा आंसुओं की नयी फसल
तैयार कर देती है ।
और वो
काटते-काटते थक जाती है ।
खिड़की से अब चाँद भी नहीं दिखता
नीम की टहनियाँ बढ़ गयी हैं ।
बाबा से कैसे कहूँ कटवा दे …इन्हे ।
की तुमसे बात करने मे ये अवरोध बनते हैं ।
बिस्तर का माप आज पता चला है ।
जब ऊर्जा सक्रिय होने लगी है ……
……और तुम नहीं हो ! !
रात दिन कट जाते हैं ।
एक धागे से सिली हुई बेमन सी
हंसी ,,जो अटकी रहती है गालों पर
जिसके एक अंश इधर-उधर
होने से ,,,रोने और हसने का पता चल जाए ।
….
…
अचानक बारिश बंद हो गयी
मैं सोच मे था ,,वो चली गयी
पर मैं भीग रहा था ,,
मेरे सामने थे कटीले तार,,,,
,,,पत्थरों के बीच बैठे मेरे साथी ,,,,
और पीछे ,,,,
वो
जो मेरे एक शब्द को तरस रही है ,,,,,,,
…………राहुल पाण्डेय “शिरीष”
Read Comments