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पत्थर

शिरीष के फूल
शिरीष के फूल
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मैं जब भी सोचता हूं


अपने होने


और


ना होने की एहमियत के बारे में

तब मुझे सही मायनों में लगता है कि

मैं इंसान हूं.

जो न कुछ खोता है

न पाता है

बस खोने और पाने के महिन रेशों

में उलझता है.

जो पत्थर तोड़ता है

बड़ा मजबूत इंसान है.

पत्थर की तरह

पर इंसान ही है.

मरता है वो

तोड़ कर पत्थर

उन्हें सौंप जाता है,

जो पत्थर बन कर बैठें हैं


राहुल पाण्डेय “शिरीष”


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