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आँखों की नमी ………

शिरीष के फूल
शिरीष के फूल
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मेरी आँखों की नमी
पैरहन थी
उसकी यादों की ,


आज जो बह चली
आज शब गुजरने
को हुई थी ,
डुबना चाहा था
किरणों संग उस पार
पर ,


उन रश्मियों की कड़िया
शायद कुछ कमजोर थी ,
भाप बनाती रही
जिसे
आँखों की नमी ।


जिसकी आकृति खोजता
हुआ ,रोज़ चाँद की
छवि बदलता ,,


रकाबत करता चाँद
उसकी खोज से
जो बढ़ा देती
आँखों की नमी ।


हर रात गुजरती एक
मुराद पाले ,
की आफताब संग
सुख जाएंगे आँसू ।


उम्मीदों को परम आकार
मिलेगा ,
पर
हर बार
आकार के रेखांकित
आवरण को
मिटा देती
आँखों की नमी ………


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