शिरीष के फूल
- 28 Posts
- 41 Comments
सागर में बहाव ,
पास की रेत
पर पैरों के निशान
और निशान के
नीचे से रेत हट कर
गर्तनुमा की दीवार का रूप
लिए है |
ऐसे ही हजारों छलछालाये गर्त
हैं सबों के मन में
पर गूंजते हैं कान किसके ,
इन दृर थपेड़ों पर ?
मूक व्योम में
इन साधारण चीखों को
प्राण देता कौन है ?
सब विश्व की वाह्य
झंकार में
निरंतर लीन हैं
आत्मबोध का परिचय
यहाँ कौन देता है ?
जटिल है ये माना
पर ,जटिलता
सदेव
उत्थान का मार्ग है |
और
जटिल संघर्ष का
क्या खुद सामीप्य
नहीं होता
अस्तित्वा निर्माण में ?
…………राहुल पाण्डेय “शिरीष”
Read Comments