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आज मौसम में फिर वही नमी लगी……

शिरीष के फूल
शिरीष के फूल
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aaltaन जाने क्योँ ?
आज मौसम में फिर वही नमी लगी ,
जो उसके बाँहों में मिलती थी |
कड़ी धुप में सुकून मिलता था ,
उसके महावर से गुलों को रंग मिलता था |
उसकी जुल्फों में बादल करवट बदलते ,
चाँद को शीतलता उसी से मिलती थी |
न जाने क्योँ ?
आज मौसम में फिर वही नमी लगी ,
जो उसके बाँहों में मिलती थी |
भोर का आगाज करती थी वो ,
वो रात को थपक कर सुला देती ,
उससे सुरों को साज मिलता ,
उससे मुझे अनदेखी राहें मिलती थी |
न जाने क्योँ ?
आज मौसम में फिर वही नमी लगी ,
जो उसके बाँहों में मिलती थी |
आईने भी चमक उठते थे उसके गुजरने से
दामिनी भी रंग बदलती थी .
उसके इशारों से बारिश को गति मिलती,
उसके स्पर्श से मुझे तरावट मिलती थी |
न जाने क्योँ ?
आज मौसम में फिर वही नमी लगी ,
जो उसके बाँहों में मिलती थी |
उसकी याद ही आज रक्त को बांधे है ,
वो आमिज़ है मेरी धमनियों में ,
उससे सारे सरोकार मिलते थे ,
मेरे हर बार टूटने के बाद ,
उससे ही नयी ज़िन्दगी मिलती थी |
न जाने क्योँ ?
आज मौसम में फिर वही नमी लगी ,
जो उसके बाँहों में मिलती थी |

………राहुल पाण्डेय “शिरीष”


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